भारत में तलाक के नियम का प्रबंधन हिंदू विवाह अधिनियम 1955, मुस्लिम पर्सनल लॉ, विशेष विवाह अधिनियम 1954, भारतीय तलाक अधिनियम 1869 और ईसाई विवाह अधिनियम 1872 के तहत किया जाता है।
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955: ये कानून हिंदू समुदाय में शादी के नियमों को निर्धारीत कर्ता है। इसमें तलाक को तीन प्रकार से विभाजित किया जाता है - सामान्य तलाक, द्वंद्वज तलाक और दुसारी शादी की रुकावत वाला तलाक। सामान्य तलाक में पति को तलाक देना होता है और द्वंद्वज तलाक में दोनो पति पत्नी के द्वारा तलाक दिया जाता है। दुसारी शादी की रुकावत वाले तलाक में तलाक के खराब पति और पत्नी एक दूसरे से शादी नहीं कर सकते।
- मुस्लिम पर्सनल लॉ: ये कानून मुसलमान समुदाय में शादी के नियमों को निर्धारीत कर्ता है। इसमें तलाक को तीन प्रकार से विभाजित किया जाता है - तलाक-ए-अहसन, तलाक-ए-हसन और तलाक-ए-बिद्दत। तलाक-ए-अहसन में तलाक एक बार दिया जाता है, तलाक-ए-हसन में तलाक तीन बार दिया जाता है और तलाक-ए-बिद्दत में तलाक तीन बार एक साथ दिया जाता है।
- स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954: ये कानून इंटरकास्ट और इंटररिलिजन शादियों के लिए बनाया गया है। इसमें तलाक को एक प्रकार से विभाजीत किया जाता है।
- भारतीय तलाक अधिनियम, 1869: ये कानून क्रिस्टी समुदाय में शादी के नियमों को निर्धारीत कर्ता है। इसमें तलाक को एक प्रकार से विभाजीत किया जाता है।
- क्रिश्चियन मैरिज एक्ट, 1872: ये कानून क्रिस्टी समुदाय में शादी के नियमों को निर्धारित कर्ता है। इसमें तलाक को एक प्रकार से विभाजीत किया जाता है।
तलाक के नियम और सभी कानूनों में अलग-अलग होते हैं। इस्लीये, अगर आप तलाक की प्रक्रिया के बारे में जनाना चाहते हैं, तो आपको अपने समुदाय के अनुसार सही कानून को खोजना चाहिए और उसके तहत तलाक की प्रक्रिया का पालन करना होगा।